Friday, April 18, 2025
Google search engine
HomeUncategorizedहोली और जुम्मे की नमाज़ पर होगी सौहार्द की परीक्षा - डॉ...

होली और जुम्मे की नमाज़ पर होगी सौहार्द की परीक्षा – डॉ अतुल मलिकराम

ONE NEWS NETWORK DIGITAL

होली का पर्व रंगों, उल्लास और आपसी भाईचारे का प्रतीक है। यह केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग है, जो अनेकता में एकता को दर्शाता है। हालांकि पिछले कुछ सालों में यह भी देखने में आया है कि होली हो या दिवाली, ईद या बकरीद, त्यौहार अपने आयोजन से पूर्व एक ख़ास सियासी रंग में रंग जाते हैं। उदाहरण के लिए हाल ही में बिहार के दरभंगा जिले की मेयर अंजुम आरा का एक बयान सामने आया, जिसमें उन्होंने आग्रह किया कि जुम्मे की नमाज़ के मद्देनजर होली को दो घंटे के लिए रोका जाए। इसके जवाब में बीजेपी विधायक मुरारी मोहन झा ने स्पष्ट कर दिया कि होली नहीं रुकेगी और मुस्लिम समाज अपने स्तर पर नमाज़ के समय को समायोजित कर ले। उधर विधायक करनैल सिंह ने भी अपील की कि जुम्मे की नमाज़ घर पर पढ़ी जाए।सोचने की जरुरत नहीं है कि आखिर शासन-प्रशासन को ऐसी बयानबाजी क्यों करनी पड़ रही है? यूं तो इस मुद्दे को देखने के कई तरीके हो सकते हैं लेकिन एक जायज तरीका यह भी है कि प्रशासन और समाज दोनों, ऐसे मौकों पर संयम और समझदारी से काम ले। इसमें कोई दो राय नहीं कि किसी एक धर्म के अनुयायियों को दूसरे धर्म के आयोजनों में बाधा डालने का अधिकार नहीं है, लेकिन एक सच यह भी है कि हर किसी को दूसरे की आस्था का सम्मान करना ही चाहिए। होली थोड़ी देर पहले या बाद में खेली जा सकती है, तो नमाज़ भी विशेष परिस्थितियों में कुछ समय आगे-पीछे की जा सकती है। संभल के सीओ अनुज चौधरी का यह कहना कि “अगर रंग लगने से किसी का धर्म भ्रष्ट होता है तो वे घर से न निकलें”, मेरी नजर में यह एक प्रशासनिक अधिकारी का जिम्मेदारी भरा बयान नहीं है। प्रशासन का काम समाज को तोड़ने की जगह जोड़ने का होता है। हालांकि उपरोक्त बयान समाज को जोड़ने की कोशिश करते तो नजर नहीं आते। भारत की खूबसूरती इसी में है कि यहाँ हर धर्म, हर जाति और हर विचारधारा के लोग मिल-जुलकर रहते हैं। हालांकि इस खूबसूरती में अब साल-दर-साल सौहार्द के नाम पर दाग चिपकते जा रहे हैं। जरूरत इस बात की है कि हम होली और नमाज़ के इस संयोग को टकराव की तरह न देखें, बल्कि सौहार्द के अवसर के रूप में अपनाएं। समाज के दोनों पक्षों को चाहिए कि वे एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करें और ऐसा कोई कार्य न करें जिससे अशांति फैले। प्रशासन को भी ऐसी अपीलें करनी चाहिए जो मेल-जोल को बढ़ाएं, न कि विभाजन का कारण बनें। इस बार होली पर हम सभी यह प्रण लें कि कोई भी रंग आपसी प्रेम और भाईचारे से ऊपर नहीं होगा, और कोई भी इबादत इंसानियत से बड़ी नहीं होगी।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -
Google search engine

Most Popular

Recent Comments